tag:blogger.com,1999:blog-2537210193939178330.post3808590984735969579..comments2022-11-20T05:31:34.313-08:00Comments on जो अनकहा रहा: हिन्दी संसार में अक्षांश व देशान्तर की रेखाएं-2शिक्षा : पीएच. डी. तक।http://www.blogger.com/profile/14437295166160584135noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-2537210193939178330.post-64002175694695542742010-01-05T10:29:28.041-08:002010-01-05T10:29:28.041-08:00बाज़ार व्यवस्था और मठाधीशों से भाषाई संसार मुक्त न...बाज़ार व्यवस्था और मठाधीशों से भाषाई संसार मुक्त नहीं होने वाला है. आलोचक और संपादकों के नाम वर्षों से बदले नहीं हैं. आपने हिंदी सेवा नाम के व्यापार का सटीक वर्णन किया है. विभिन्न अंचलों की सुगंध से हिंदी भाषा और साहित्य का विस्तार भी वर्षों से थमा हुआ है. अपनी भाषा में पढने का अवसर का मतलब अब दोअम<br />दर्जे के मुंशियों को पढना रह गया है. <br /><br />यह सब मेरे जैसे जिज्ञासू पाठकों को आंग्ल भाषा की ओर खदेड़ना नहीं तो और क्या है? <br /><br />संभव है बाज़ार का बदलता स्वरुप कोई राह दिखाए.Anonymousnoreply@blogger.com